क्यों समझा इसे बेचारी है, इसने ना हिम्मत हारी है। क्यों समझा इसे बेचारी है, इसने ना हिम्मत हारी है।
लांछन लगता बार बार उसपे और तुम रह जाते हो दूध के धुले। लांछन लगता बार बार उसपे और तुम रह जाते हो दूध के धुले।
आखिर क्यों मेरे ही चरित्र पर कीचड़ उछाला जाता है ? आखिर क्यों मेरे ही चरित्र पर कीचड़ उछाला जाता है ?
मातृ रूप में बनी संसारी, आधी दुनिया का संघर्ष है जारी मातृ रूप में बनी संसारी, आधी दुनिया का संघर्ष है जारी
आज की नारी की सोच को दिखाती सशक्त रचना। आज की नारी की सोच को दिखाती सशक्त रचना।
तुझमें तेरी होकर रहती, मैं तेरे भीतर की नारी हूँ। तुझमें तेरी होकर रहती, मैं तेरे भीतर की नारी हूँ।